शक्तिचालिनी मुद्रा

शक्तिचालिनी मुद्रा योग की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण तकनीक है, जिसका उद्देश्य मानव शरीर में सुप्त पड़ी कुंडलिनी शक्ति को जागृत करना होता है। कुंडलिनी शक्ति को योगिक शास्त्रों में एक अत्यंत सूक्ष्म और शक्तिशाली ऊर्जा माना जाता है जो आमतौर पर मुलाधार चक्र में स्थित रहती है। शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास करने से इस ऊर्जा को जागृत किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति की आध्यात्मिक, मानसिक और भौतिक स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।

शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास आमतौर पर सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठकर किया जाता है। इस मुद्रा में, योगी अपनी आंतरिक ऊर्जा और चेतना को जागृत करने के लिए विशेष तकनीकों जैसे कि ध्यान, प्राणायाम, बंध और मुद्राओं का उपयोग करता है। यह अभ्यास शरीर के विभिन्न चक्रों को संतुलित करता है और उनमें ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है।

शक्तिचालिनी मुद्रा

शक्तिचालिनी मुद्रा करने की विधि

यहाँ पर मैं एक यूट्यूब का वीडियो पोस्ट कर रहा हूँ जिसमे शक्तिचालिनी मुद्रा करने की विधि दिखाई गई है। शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास किसी अनुभवी योग गुरु की देखरेख में किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके गलत अभ्यास से नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।

महर्षि घेरंड ने इस मुद्रा को बहुत ही सरल तरीके से करने का तरीका बताया है।

  • एक मुलायम कपड़ा लें जो आठ अंगुल जितना लंबा और चार अंगुल चौड़ा हो। इसे अपनी नाभि पर रखें और अपनी कमर के चारों ओर बांध लें। फिर, अपने शरीर पर कुछ राख लगाएं और एक विशेष बैठने की स्थिति में बैठें जिसे सिद्धासन कहा जाता है। अंत में, अपनी सांसों जिन्हें प्राणवायु और अपानवायु कहते हैं, को मिलाकर एक विशेष तरीके से सांस लें।
  • जब तक हवा बाहर न निकल जाए तब तक अपने निचले हिस्से को कस कर दबाए रखें। जब आप ऐसा करते हैं, तो यह कुंडलिनी शक्ति नामक एक विशेष ऊर्जा को जागृत करता है और आपके शरीर में ऊपर की ओर बढ़ता है। यह सुषुम्ना नामक एक विशेष मार्ग से होकर आपके सिर के शीर्ष तक जाता है।
  • जब हम सांस लेते हैं तो प्राण और अपान नामक दो महत्वपूर्ण ऊर्जाएं मौजूद होती हैं। इन्हें संयोजित करने के लिए हमें कुछ विशेष गतिविधियाँ करनी होंगी। हम गहरी सांस लेकर प्राण ऊर्जा को अंदर की ओर खींचते हैं, और हम अपनी नाभि को अंदर और ऊपर खींचकर अपान ऊर्जा को ऊपर की ओर आकर्षित करते हैं। ऐसा करने से दोनों ऊर्जाएँ अधिक आसानी से एक साथ आ जाती हैं। यह ऐसा है जैसे जब हम अपने पेट में एक छोटी मांसपेशी को अंदर और बाहर करते हैं, तो यह ऊर्जाओं को एक साथ जुड़ने में मदद करती है।

शक्तिचालिनी मुद्रा के लाभ

  • कुंडलिनी जागरण: शक्तिचालिनी मुद्रा मुख्य रूप से कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए जानी जाती है। कुंडलिनी शक्ति का जागरण व्यक्ति की आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है और उसे उच्च चेतना की ओर ले जाता है।
  • मानसिक शांति और एकाग्रता में वृद्धि: इस मुद्रा का नियमित अभ्यास मन को शांत करता है और एकाग्रता को बढ़ाता है। यह तनाव, चिंता, और अवसाद से मुक्ति में भी सहायक होता है।
  • ऊर्जा संतुलन और प्रवाह में सुधार: शक्तिचालिनी मुद्रा शरीर की ऊर्जा को संतुलित करती है और इसे सही ढंग से प्रवाहित करती है, जिससे शरीर के विभिन्न अंगों और सिस्टमों का समुचित कार्य होता है।
  • शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार: इस मुद्रा का अभ्यास शरीर के प्राकृतिक चिकित्सा प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है, जिससे समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • चेतना का विस्तार: शक्तिचालिनी मुद्रा चेतना के विस्तार में सहायक होती है, जिससे व्यक्ति अपने अंदर और बाहर की दुनिया के प्रति अधिक जागरूक होता है।

सावधानियाँ

शक्तिचालिनी मुद्रा के अभ्यास के दौरान कुछ महत्वपूर्ण सावधानियां बरतनी चाहिए, क्योंकि यह मुद्रा अत्यंत शक्तिशाली हो सकती है और अगर इसे गलत तरीके से किया जाए तो इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं:

  • अनुभवी गुरु की देखरेख में अभ्यास करें: शक्तिचालिनी मुद्रा को आदर्श रूप से किसी अनुभवी और प्रशिक्षित योग गुरु की देखरेख में ही करना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि अभ्यास सही तरीके से किया जा रहा है और यदि किसी प्रकार की समस्या हो तो उसे तुरंत संभाला जा सके।
  • शारीरिक स्थितियाँ: यदि आपको किसी प्रकार की शारीरिक समस्या जैसे कि हृदय संबंधी विकार, उच्च रक्तचाप, या कोई अन्य गंभीर बीमारी है, तो इस मुद्रा का अभ्यास न करें।
  • गर्भावस्था: गर्भवती महिलाओं को इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह उनके लिए और भ्रूण के लिए हानिकारक हो सकता है।
  • मानसिक स्थिति: यदि आप मानसिक रूप से परेशान या अस्थिर हैं, तो इस मुद्रा का अभ्यास न करें। इस मुद्रा का अभ्यास आपकी मानसिक स्थिति को और बिगाड़ सकता है।
  • धीमी गति से आगे बढ़ें: शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास करते समय, धीरे-धीरे और संयमित तरीके से आगे बढ़ें। इसे जल्दबाजी में या अत्यधिक उत्साह के साथ न करें।
  • शरीर के संकेतों का सम्मान करें: यदि अभ्यास के दौरान आपको असहजता या दर्द महसूस होता है, तो तुरंत अभ्यास बंद कर दें। शरीर के संकेतों को समझना और उनका सम्मान करना महत्वपूर्ण है।

शक्तिचालिनी मुद्रा से संबंधित प्रश्नोत्तरी

  • प्रश्न: शक्तिचालिनी मुद्रा का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    • उत्तर: कुंडलिनी शक्ति को जागृत करना।
  • प्रश्न: शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास करने के लिए कौन सा आसन सबसे उपयुक्त है?
    • उत्तर: पद्मासन या सुखासन।
  • प्रश्न: शक्तिचालिनी मुद्रा करने से किस प्रकार की शांति प्राप्त होती है?
    • उत्तर: मानसिक शांति।
  • प्रश्न: शक्तिचालिनी मुद्रा के अभ्यास से किस प्रकार की ऊर्जा में सुधार होता है?
    • उत्तर: शरीर की आंतरिक ऊर्जा का संतुलन और प्रवाह।
  • प्रश्न: शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास किस प्रकार के व्यक्ति को नहीं करना चाहिए?
    • उत्तर: गर्भवती महिलाएं, हृदय रोगियों और उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्ति।
  • प्रश्न: शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास करते समय किस प्रकार की सावधानी बरतनी चाहिए?
    • उत्तर: इसे अनुभवी योग गुरु की देखरेख में करना चाहिए।
  • प्रश्न: शक्तिचालिनी मुद्रा करते समय कौन सी मुद्रा बनाई जाती है?
    • उत्तर: अंगूठे और तर्जनी को मिलाकर ज्ञान मुद्रा।
  • प्रश्न: शक्तिचालिनी मुद्रा के अभ्यास से किस प्रकार का जागरण होता है?
    • उत्तर: कुंडलिनी जागरण।
  • प्रश्न: शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास किस प्रकार की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है?
    • उत्तर: आध्यात्मिक जागरूकता और चेतना का विस्तार।
  • प्रश्न: शक्तिचालिनी मुद्रा का अभ्यास करने के बाद किस प्रकार के भोजन से बचना चाहिए?
    • उत्तर: भारी और तैलीय भोजन से।

 

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